नवरात्रि 3 से 12 अक्टूबर तक: कलश स्थापना के लिए दिनभर में दो मुहूर्त रहेंगे, नौ दिनों की आसान पूजन विधि

शारदीय नवरात्रि तीन अक्टूबर बृहस्पतिवार से शुरू हो रहा है। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना की जाएगी। पूरे नौ दिनों तक श्रद्धालु माता के विभिन्न रूपों की आराधना करेंगे। अष्टमी व नवमी का व्रत 11 अक्टूबर को होगी। इसी दिन कन्या पूजन व हवन भी किया जाएगा। 12 अक्टूबर को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक विजयादशमी पर्व मनाया जाएगा।

ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र उपाध्याय के अनुसार इस बार माता का आगमन पालकी पर व गमन मुर्गा पर हो रहा है। यह अच्छा नहीं माना जा रहा है। उन्होंने बताया कि महासप्तमी 9 अक्टूबर को होगी। इसी दिन पंडालों में मिट्टी की मूर्तियों की स्थापना की जाएगी।


अष्टमी तिथि 10 अक्टूबर को सुबह सात बजकर 29 मिनट से शुरू हो रही है। इस तिथि का समापन 11 अक्टूबर को सुबह छह बजकर 52 मिनट पर होगा। इसके बाद नवमी तिथि शुरू हो जाएगी, जो 12 अक्टूबर की सुबह पांच बजकर 47 मिनट तक रहने वाली है।

इस बार सप्तमी और अष्टमी तिथि एक ही दिन पड़ रही है। ऐसी स्थिति में अष्टमी व्रत करना शुभ नहीं माना जाता। ऐसे में इस बार अष्टमी और नवमी का व्रत एक ही दिन यानी शुक्रवार 11 अक्टूबर को किया जाएगा। उन्हाेंने बताया कि निशा पूजा 10 अक्टूबर की रात्रि में होगी।

शुभ मुहूर्त में होगी कलश की स्थापना
पंडित शरद चंद्र के अनुसार कलश स्थापना पहले दिन बृहस्पतिवार को शुभ मुहूर्त में की जाएगी। नवरात्रि के पहले दिन बृहस्पतिवार को सूर्योदय 6 बजकर 6 मिनट पर होगा। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि का मान पूरा दिन और रात में 1 बजकर 9 मिनट तक है।

इस दिन हस्त नक्षत्र दिन में 3 बजकर 17 मिनट तक रहेगा। उसके पश्चात चित्रा नक्षत्र है। इसलिए कलश स्थापना सुबह 6 बजकर 6 मिनट के बाद और दिन में 3 बजकर 17 मिनट के अंदर ही किया जाएगा। उसके बाद चित्रा नक्षत्र शुरू हो रहा है।

शास्त्रों में चित्रा नक्षत्र में कलश स्थापना का निषेध स्पष्ट रूप से उल्लेख है। उन्होंने कहा कि सबसे पहले मिट्टी की वेदी बनाकर उसमें जौ और गेहूं मिलाकर बोएं। उस पर विधि पूर्वक कलश स्थापित करें। कलश पर देवीजी की मूर्ति (धातु या मिट्टी) अथवा चित्रपट स्थापित करें।

पूजा सामग्री एकत्रित कर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठें। आचमन, प्राणायाम, आसन शुद्धि करके शांति मंत्र का पाठ कर संकल्प करें। रक्षा दीपक जला लें। सर्वप्रथम क्रमशः गणेश अंबिका, कलश (वरुण), मातृका पूजन, नवग्रहों का पूजन करें।

माता के इन रूपों की होगी आराधना
3 अक्टूबर- मां शैलपुत्री की पूजा
4 अक्टूबर – मां ब्रह्मचारिणी की पूजा

5 अक्टूबर – मां चंद्रघंटा की पूजा
6 अक्टूबर – मां कुष्मांडा की पूजा

7 अक्टूबर – मां स्कंदमाता की पूजा
8 अक्टूबर – मां कात्यायनी की पूजा

9 अक्टूबर – मां कालरात्रि की पूजा
10 अक्टूबर – मां महागौरी की पूजा
11 अक्टूबर – मां सिद्धिदात्री की पूजा

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