हिन्दू धर्म में आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को हर साल स्कंद षष्ठी का पर्व बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है. हर महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान शिव के सबसे बड़े पुत्र कार्तिकेय की विधि विधान से पूजा की जाती है, क्योंकि यह तिथि भगवान कार्तिकेय को समर्पित है. मान्यता है कि स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से लोगों को सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और जीवन में आने वाले संकटों से छुटकारा मिलता है. इसके अलावा घर परिवार के लोगों में प्रेम बना रहता है और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है.
स्कंद षष्ठी तिथि
द्रिक पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 8 अक्टूबर दिन मंगलवार को सुबह 11 बजकर 17 मिनट पर शुरू होगी और 9 अक्टूबर दिन बुधवार को दोपहर 12 बजकर 34 मिनट पर समाप्त होगा. ऐसे उदयातिथि के अनुसार, स्कंद षष्ठी का व्रत 9 अक्टूबर को ही किया जाएगा. इस व्रत का पारण अगले दिन 10 अक्टूबर को किया जाएगा.
स्कंद षष्ठी पूजा विधि
स्कंद षष्ठी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें.
पूजा स्थल को साफ-सुथरा करके भगवान कार्तिकेय की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें.
पूजा से पहले भगवान कार्तिकेय की मूर्ति को फूलों से सजाएं.
पूजा के दौरान कार्तिकेय भगवान के सामने दीपक जलाकर धूप-दीप करें.
भगवान कार्तिकेय को फूल, फल, मिठाई आदि अर्पित करें.
पूजा के समय भगवान कार्तिकेय का ध्यान करते हुए मंत्रों का जाप करें.
मंत्र: देव सेनापते स्कंद कार्तिकेय भवोद्भव। कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तु ते॥
पूजन के बाद भगवान कार्तिकेय की कथा सुनें या पढ़ें.
पूजा के अंत में ब्राह्मण को भोजन कराएं और गरीबों और जरूरतमंदों को दान करें.
स्कंद षष्ठी व्रत नियम
स्कंद षष्ठी व्रत के दिन कुछ भक्त पूरे दिन निराहार व्रत रखते हैं. कुछ भक्त केवल फल खाकर व्रत रखते हैं.
व्रत के दौरान लोगों को सात्विक भोजन ही करना चाहिए.
रात में जागरण और भजन-कीर्तन करने से मन को शांति प्राप्त होती है.
संतान प्राप्ति के लिए स्कंद षष्ठी का व्रत रखा जाता है.
शत्रुओं का नाश करने के लिए भी यह व्रत किया जाता है.
इस व्रत के करने से लोगों को लंबी आयु और स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
स्कंद षष्ठी का महत्व
धार्मिक मान्यता है कि जो महिलाएं स्कंद षष्ठी का व्रत करती हैं. उन्हें अपने जीवन में सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त होती है. इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति और संतान की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. इस व्रत को करने से भगवान कार्तिकेय के साथ ही भगवान शिव और माता पार्वती का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है. जो लोग इस व्रत को करते हैं उन्हें स्कंद षष्ठी के अगले दिन शुभ मुहूर्त में विधि विधान से व्रत का पारण करना जरूरी होता है. ऐसा करने से व्रत सफल होता है और उसका पूरा फल प्राप्त होता है और जीवन में आने वाली परेशानियां दूर होती है.