दिवाली के दूसरे दिन उज्जैन में होता है ‘मौत का खेल’, लोगों को रौंदती है गाय माता

देशभर में दीपावली पर अलग-अलग परंपराएं निभाई जाती है। उज्जैन जिले के बड़नगर तहसील के भिड़ावद गांव में भी एक ऐसी ही परंपरा सालों से चली आ रही है। जिसे देखकर लोग कांप उठते है। दरअसल, यहां लोगों को जमीन पर लिटाया जाता है। इसके बाद उनके ऊपर से गायों को दौड़ाया जाता है।

परंपरा के अनुसार लोगों का मानना है कि ऐसा करने से उनकी मन्नत पूरी हो जाती है। दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा पर ऐसी परंपरा निभाई निभाई जाती है। ऐसी परंपरा के पीछे लोगों का यह भी मानना है कि गाय में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है ऐसे में उनके पैरों के नीचे आने से देवताओं का आर्शीवाद भी मिलता है। आस्था के नाम पर यहां लोगों की जान से खिलवाड़ किया जाता है। इस आयोजन में शामिल होने वाले लोगों को परंपरा के अनुसार पांच दिन तक उपवास भी करना होता है।

हालांकि ये परंपरा कब शुरू हुई ये किसी को याद नहीं लेकिन गांव के बुजुर्ग हो या जवान इसे देखते हुए बड़े हुए हैं। इस गांव में आसपास के गांवों के लोग भी आते हैं जिन्हें अपनी मन्नत मांगनी होती है, वे दीवाली के 5 दिन पहले अपना घर छोड़ देते हैं। इसके बाद माता भवानी के मंदिर में जाकर रहने लगते हैं। दिवाली के अगले दिन मेला लगता है।

दीवाली के दूसरे दिन पड़वा पर सुबह पूजन किया जाता है। इसके साथ ढोल बाजे के साथ लोग गांव की परिक्रमा की करते हैं। वहीं जिनकी मन्नतें पूरी होती है वो गायों के सामने लेट जाते हैं, फिर गायें इन्हें रौंदती हुई निकल जाती है। वहीं मन्नतें मांगने वालों को पूरा भरोसा होता है कि पुरखों के समय से चली आ रही इस परंपरा को निभाने से उनकी मुराद पूरी होती है।

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