इंदौर, राजेश जैन दद्दू – आध्यात्म सरोवर के राजहंस, पट्टाचार्य, शताब्दी देशना चार्य, धरती के देवता चर्या शिरोमणी आचार्य विशुद्धसागर जी महाराज के 6 शिष्य श्रमण मुनी श्री अनुत्तर सागर जी महाराज, श्रमण मुनी श्री प्रणेय सागर जी, श्रमण मुनी श्री प्रणव सागर जी, श्रमण मुनी श्री सर्वार्थ सागर जी, श्रमण मुनी श्री संकल्प सागर जी और श्रमण मुनी श्री सदभाव सागर जी महाराज जी का उपसंघ मालेगांव में विराजमान हैं।
आचार्य श्री विशुद्धसागर महाराज जी के शिष्य श्रमण मुनी श्री अनुत्तर सागर महाराज जी को दिगंबर जैन समाज मालेगांव द्वारा 21 नवम्बर को “गुरुवार को तपशिरोमणी” उपाधी से अलंकृत किया गया।
चर्याशिरोमणी आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के शिष्य मुनिश्री अनुत्तर सागर जी महाराज जी की चर्चा आज पूरे विश्व में हो रही है। तप उपवास की साधना के लिए जैन मुनि अनुत्तर सागर जी का नाम गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज किया जा चुका है। मुनी श्री अनुत्तर सागर महाराज जी को छोटी उम्र में ही वैराग्य हो गया था। उन्होंने 12 साल की तप साधना में अभी तक 1850 उपवास किये हैं। उनके उपवास में खाने की तो बात ही दूर, पूरे 24 घण्टे में एक बूंद पानी भी नहीं लिया जाता। मुनिश्री द्वारा वर्ष 2023 में 256 से अधिक उपवास किए गए।
मुनि श्री अनुत्तर सागर जी का संक्षिप्त जीवन परिचय –
- जन्म नाम -जितेंद्र जैन
- माता- श्रीमती लक्ष्मी देवी जैन
- पिता- श्री जमुना प्रसाद जैन *जन्म ग्राम -भोपाल( मध्य प्रदेश)
- जन्म दिनांक- 6 अगस्त 1977 *लौकिक शिक्षा -हायर सेकेंडरी
- दीक्षा पश्चात नाम- मुनि श्री 108 अनुत्तर सागर जी महाराज *ब्रह्मचर्य व्रत दिनांक – 26/11/2004
- ब्रह्मचर्य व्रत गुरु- आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज *ब्रह्मचर्य व्रत स्थल – भोपाल( मध्य प्रदेश)
- मुनि दीक्षा -दिनांक 8 नवंबर 2011
- मुनि दीक्षा स्थान -मंगलगिरी जिला सागर (मध्य प्रदेश)
- मुनि दीक्षा गुरु- आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी महामुनिराज।
मुनि श्री अनुत्तर सागर जी 1011 दिन की मौन साधना तपस्या भी कर चुके हैं। तथा 9 राज्यों में 30,000 कि.मी. की पदविहार भी कर चुके हैं। आप प्रथमानुयोग के ज्ञाता है। आपने चारित्रशुद्धि व्रत के 1234 उपवास पूर्ण कर चुके हैं। आपने सहस्त्रनाम के 428 उपवास भी पूर्ण किये हैं। आपने आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज जी के साथ अभी तक 100 से अधिक जिनबिम्ब पंचकल्याणकों में अपनी सहभागिता की है। इस पंचम काल में चतुर्थ काल जैसी साधना में लीन दिगंबर जैन मुनी श्री अनुत्तर सागर जी हैं। नमोस्तु शासन जयवंत हो।